भोपाल। मैं भोपल हूं, राजा भोज का भोजपाल, या कहें नवाबी शहर, या फिर झीलों का शहर। यूं तो मेरा अस्तित्व एक हजार साल से पुराना है। मुझ पर पराक्रमी राजा भोज ने शासन किया, फिर अफगानिस्तान से दोस्त मोहम्मद खान और उनकी कई पीढ़ियाें की सत्ता यहीं से चली। हजार साल पुरानी होने के बाद भी मुझे असली पहचान मिली 1 नवंबर 1956 की दिपावली के दिन। जब मुझे आजाद भारत के ह्दय प्रदेश मध्यप्रदेश की राजधानी घोषित कर दिया गया। जवाहरलाल नेहरू की राजधानी, मुझे राजधानी बनाने को वे आतुर थे।
जिसे आज एशिया का सबसे बड़ा तालाब कहा जाता है, वह कभी सचमुच एक समुद्र की तरह था। मेरे आसपास बसे कई शहर इसमें डूबे हुए थे। कभी तालाबों की सीढ़ी देखी है? मेरे पास आज भी तीन सीढ़ीदार तालाब हैं। हरियाली, खूबसूरत तालाब और भव्य मस्जिदें मेरी खूबसूरती हैं। जो यहां आया, मेरा मुरीद हुए बिना नहीं रहा।
सिर्फ तालाब ही नहीं, हरी-भरी पहाड़ियां भी मेरी पहचान है या यूं कहें कि मेरी बसाहट ही पहाड़ियों पर है। अरेरा पहाड़ी से पूरा राज्य चलता है, तो श्यामला पर मप्र के मुखिया रहते हैं। हरियाली, खूबसूरत तालाब और भव्य मस्जिदें मेरी खूबसूरती हैं। मैं कई मायनों में भारत में अपनी तरह का इकलौता शहर हूं। महिला नवाबों को ही लीजिए, नवाब काल में पूरे 100 साल तक मुझ पर महिलाओं ने ही राज किया है। ऐसा भारत के किसी शहर में नहीं हुआ।
मुझे मस्जिदों का शहर भी कहा जाता है। दुनिया की सबसे बड़ी मस्जिदों में से एक ताजुल मसाजिद और सबसे छोटी ढाई सीढ़ी की मस्जिद यहीं हैं। राजधानी के रूप में मैं 59 साल का हो गया हूं, कोई भारत में बसना चाहे तो दस सबसे रहनशील शहर में शुमार होता हूं। आइये, 1 हजार साल से ज्यादा का इतिहास समेटे भोपाल को महसूस कीजिए, मुझे जीकर देखिये, यकीन मानिये, आप मुझसे मोहब्बत करने लगेंगे।
Saturday, 31 October 2015
- Saturday, October 31, 2015
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