बिहार चुनाव के नतीजों में अभी दो दिन बाकी हैं. एग्जिट पोल भी अबकी बार एकमत नहीं हैं. दो सर्वे महागठबंधन और चार एनडीए की सरकार बनवा रहे हैं. यह तो तय है कि नतीजों के बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता. जिस तरीके कांटे की टक्कर दिख रही है, उससे यह भी हो सकता है कि कोई एक गठबंधन 4-5 के अंतर से ही सरकार बनाने से चूक जाए. बहुमत के लिए 122 सीटें जरूरी हैं. यदि महागठबंधन छोटे से अंतर से पीछे रहता है तो जीतनराम फिर नीतीश कुमार के 'मांझी' साबित हो सकते हैं.
वैसे भी, एग्जिट पोल के मुताबिक मांझी को महादलितों के 46 फीसदी वोट एनडीए को मिले हैं. जाहिर तौर पर यह मांझी की वजह से ही है. महागठबंधन को 35 फीसदी और बाकी 19 फीसदी निर्दलीयों को मिले हैं. साफ है मांझी बड़ी ताकत बनकर उभरने वाले हैं. ऐसे में उन्हें कमतर करके नहीं आंका जा सकता. वह सरकार बनवाने की स्थिति में रहेंगे. 5 वजहें, जिनसे मांझी दोबारा नीतीश के पास जा सकते हैं.
1. नीतीश कुमार मांझी के पुराने साथी हैं. नीतीश ने ही उन्हें मुख्यमंत्री बनाया और वह नौ महीने तक इस पद पर रहे. हालांकि उनकी राहें इसी पद को लेकर अलग हुई थीं, लेकिन यदि नीतीश उन्हें बुलाते हैं तो दोबारा मांझी के लिए सत्ता में जाने का रास्ता साफ होगा.
2. आरक्षण बिहार में बड़ा मुद्दा है. यह चुनावी मसला भी रहा है. इस मुद्दे पर मांझी और नीतीश एक हैं, जबकि वह संघ के विचार के खिलाफ हैं. भागवत अब भी आरक्षण नीति पर पुनर्विचार के अपने बयान पर कायम हैं. बीजेपी की मजबूरियां वह भी समझते हैं.
3. बिहार में महादलित की अवधारणा ही नीतीश ने दी थी. मांझी का पूरा जनाधार इसी समुदाय पर टिका है. नीतीश ने बिहार में महादलितों के लिए काम भी खूब किए हैं. यानी मांझी और नीतीश वैचारिक धरातल पर एक-दूसरे के ज्यादा करीब हैं.
4. एनडीए के सत्ता में न आने पर मांझी को किसी तरह का तात्कालिक फायदा नहीं होगा. बीजेपी ने मात्र 20 सीटें देकर गठबंधन में उनका कद पहले ही जाहिर कर दिया. सिर्फ भविष्य में किसी राज्य के राज्यपाल का एक आश्वासन जरूर हो सकता है.
5. यदि मांझी सरकार बनवाने की भूमिका में रहते हैं तो वह अपने लिए किसी भी पद की मांग कर सकते हैं. ऐसे में वह अपनी पहले वाली शक्तिशाली स्थिति में लौटकर आ सकते हैं. इस लिहाज से मांझी के लिए यह फायदे का ही सौदा साबित होगा
Friday, 6 November 2015
- Friday, November 06, 2015
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